चलते रहने चाहिए सतत शिक्षण-प्रशिक्षण-विमर्श ; सत्य, शील और सेवा हमारी सबसे बड़ी कसौटी – डॉ. ब्रजेश यादव
आगरा | अकैडमी ऑफ मेडीकल स्पेसलिटीज़ और इंडियन मेडीकल एसोसिएशन आगरा ब्रांच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “मेडीकल पेशे में मेडिकोलीगल पहलू” विषय पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षण (सीएमई) में सप्रसिद्ध समाजसेवी, उद्योगपति
डॉ. ब्रजेश यादव ने कहा कि
अभी कुछ समय पूर्व ही जबकि समस्त विश्व कोविड-19 जैसी भयंकर संक्रामक महामारी से जूझ रहा था ; तब जबकि परिजन भी अपने लोगों से दूरी बनाए रखने को मजबूर थे।
ऐसे समय में ‘धरती के भगवान’ डॉक्टर योद्धाओं की तरह कोरोना संक्रमितों के साथ कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में डटे रहे। विश्व- इतिहास में डॉक्टरों की जिजीविषा ने नए प्रतिमान गढ़े हैं।
डॉ यादव ने आगे कहा कि प्लेग, चेचक, मलेरिया, टीबी जैसी भयंकर बीमारियां हों या सर्दी- जुकाम डॉक्टर न सिर्फ इनका निदान करते रहे हैं बल्कि उन पर पार भी पाते रहे हैं। तभी तो डॉक्टरों को धरती पर ईश्वर की संज्ञा दी गई है। दूसरे शब्दों में कहें तो डॉक्टर उम्मीद और विश्वास का दूसरा नाम हैं। बीमार और तीमारदार जिनके कंधों पर अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों को डाल देते हैं।
उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि डॉक्टर समाज कल्याण में सबसे बड़े भागीदार होते हैं। बस आवश्यकता है तो पेशे की नैतिकता और थोड़ी अधिक संवेनशीलता की, सरोकार, थोड़ी अधिक मानवीयता की।
डॉ. ब्रजेश ने आगे कहा कि हमें सेवा, समर्पण, शील, कल्याण के मार्ग पर चलने के साथ कानूनी जानकारी भी होनी चाहिए। मेडिकल से संबंधित कानूनों का पालन अपनी सेवा के प्रति अटल विश्वास रखने हुए करना होगा।
सत्य मार्ग पर , सेवा मार्ग पर टिककर ही हम हर प्रकार के आक्षेपों , बाधाओं , कानूनी पेचीदगियों से बच सकते हैं।
यह विश्वास करिये कि चिकित्सक जानबूझकर गलती नहीं करते। उन्हें
ठीक उसी प्रकार आवश्यक कानून की जानकारी होनी चाहिए, जैसे उपचार संबंधी ज्ञान होता है।
चिकित्सकों के खिलाफ हिंसा के पहलू पर भी हमें संवेदनशील होना है। अनेक बार नासमझी और जानकारी के अभाव में डॉक्टरों के विरुद्ध माहौल बनाया जाता है। हिंसा की जाती है।
डॉक्टरों और मरीजों के बीच के संबंध सुधारना इतना कठिन भी नहीं है तभी इसे आसान बनाने के लिए कानूनी पक्ष का सहारा लेने की बात हो रही है। यद्यपि कानून कोई किताबी सी चीज मालूम होती है लेकिन स्वास्थ्य जैसे नाजुक पक्ष को लेकर अगर कानून जैसी पेचीदगी सामने आने लगे तो यह निश्चित ही विचारणीय है। उम्मीद है कि डॉक्टर इस बात की गंभीरता को समझेंगे
गंभीरता के साथ!
मेडिकोलीगल जानकारी दुरुस्त कर हम कानूनी पेचीदगी से बच सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर्स को मेडिकोलीगल संबंधी मसले संभालने, विवादास्पद और कानूनी रूप से महत्वपूर्ण मामलों में दस्तावेजों का प्रबंधन सहित अन्य तमाम मसलों पर जागरूक किया जा रहा है। बीते कुछ वर्षों में चिकित्सकों और तीमारदारों के बीच विवाद में भी इजाफा हुआ है। चिकित्सकों कि इन परिस्थितियों से कैसे बचा जाए। जिससे वे कानूनी रूप से भी सुरक्षित रहे। यह शिक्षण-प्रशिक्षण-विमर्श सतत चलते रहना चाहिए।
इसलिए भी आज के विषय की प्रासंगिकता है।
डॉ यादव ने अंत में इन श्लोकों से अपने वक्तव्य का समापन किया।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद दुःखभाग भवेत।”
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम्॥
– हे प्रभु! मुझे राज्य की कामना नहीं, स्वर्ग-सुख की चाह नहीं तथा मुक्ति की भी इच्छा नहीं। एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाए।
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं नापुनर्भवम् ।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥
यानी हे प्रभु! मुझे राज्य की कामना नहीं, स्वर्ग-सुख की चाह नहीं तथा मुक्ति की भी इच्छा नहीं। एकमात्र इच्छा यही है कि दुख से संतप्त प्राणियों का कष्ट समाप्त हो जाए।